Handful डॉक्टर-इंजीनियर-IAS



हमारे यहाँ माँ-बाप बच्चों को जूते का फीता बाँधना भले ही बाद में बताते हैं लेकिन डॉक्टर,इंजीनियर(IIT वाला) ,IAS/IPS बनने के फ़ायदे पहले बता देते हैं!

एक छोटे से शहर के किसी मिडिल क्लास फैमिली का लौंडा, जो पढ़ने में थोड़ा भी ठीक ठाक हो (या ना भी हो),  बचपन से ही उसकी फीडिंग इस तरह से होती है, इन तीनों प्रोफ़ेशन का ऐसा भौकाल उसके आस पास तैयार किय़ा जाता हैं कि उसका अपरिपक्व दिमाग़ इनमें से ही किसी एक को आगे जाने के लिए चुन लेता है! आप 10 से 16-17 साल तक के बच्चों से पुछिये उसे क्या बनना है, 90% यही रटा रटाया जवाब देंगे!

मजेदार बात ये हैं कि डॉक्टर-इंजीनियर बनने की चाह रखने वाले 90% से भी अधिक ये नहीं बन पाते! जो कुछ लोग बन जाते हैं, उनमें से भी कइयों को बाद में एहसास होता हैं कि ये किस लाइन में आ गए हम? हमें तो कुछ करना पसंद हैं! (Bank में नौकरी करने वाले इंजीनियर दिल पर ना लें)

शायद ये भी एक कारण हैं कि हमारा इंडिया global happiness index में 155 देशों की लिस्ट में 122वें स्थान पर है!

ये लिखने के पहले मैं अपने बारे में सोच रहा था! बनना मुझे डॉक्टर था, ग्रेजुएशन मैं geology से कर रहा हूँ, और पढ़ता रहता हूँ हिन्दी लिटरेचर! हो क्या रहा है ये???

ये जो फ़िल्मस्टार के बच्चे होते हैं, भले ही टैलेंट चुटकी भर भी ना हो, जन्म से पहले से पता होता है कि बनना उन्हें "कलाकर" ही है! वैसे ही किसी बड़े बिजनेस पर्सन की औलाद को भले ही बिजनेस की स्पेलिंग भी ना आती हो, कंपनी का CEO वही होता है! किसी सांसद, विधायक, मन्त्री का लौंडा, भले ही उसका ख़ुद का कुत्ता भी उसकी बात ना सुनता हो, वो भी नेता बन ही जाता हैं!

और इधर हम लोग हैं, छोटे शहरों के मिडिल क्लास लौंडे!  कोई अच्छा गाता हो, कोई अच्छा लिखता हो, कोई अच्छी पेंटिंग बनाता हो, लेकिन एक टाइम पर, यही कोई 20-25 की उम्र के आस पास आते आते उसे ये सब बंद करना पड़ता हैं! क्योकि यहाँ तक आते आते उसे पता चल जाता हैं कि गाकर, लिखकर या फोटो बनाकर उसका पेट नहीं भरने वाला! बूढ़ी होती माँ और कमज़ोर होते बाप को देख कर उसे एहसास होने लगता हैं कि लाइफ में स्टेबल होने के लिए पैसे और जॉब की जरूरत होती हैं! फिर कुछ डॉक्टर इंजीनियर बन, और कुछ डॉक्टर इंजीनियर बने बिना स्टेबल होने की जुगत में लग जाते हैं! अंत में प्रोफ़ेशन कोई भी हो,पर हमारे अन्दर वो मुट्ठी भर डॉक्टर-इंजीनियर-IAS बचा रह जाता हैं, हमारी रचनात्मकता पर हावी होकर!
ECG मशीन पता हैं ना? जहाँ स्टेबल स्ट्रेट लाइन का मतलब मौत हैं...........वैसे ही,यहाँ क्रिएटिविटी की मौत!

ख़ैर......2017 भी बीत गया और हमें अभी तक ये पता नहीं है कि हमें करना क्या हैं, लाइफ में कैसे स्टेबल होना हैं??
एक और ordinary साल बीत गया, एक और ordinary साल आ रहा हैं....... पता नहीं इस ordinary में थोड़ा सा extra डालने की ताकत हम  मिडिल क्लास लौंडो में कब आएगी!

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