जाओ
पता नहीं क्यों लिख रहा हूँ। जिनके लिए लिखा है उनतक बात नहीं पहुँचेगी। लेकिन फिर भी लिख दे रहा हूँ। बिहार के मजदूरों! तुम अपने घर की तरफ निकल तो गए हो, कुछ पहुँच जाओगे, कुछ मर जाओगे, लेकिन जहाँ तुम्हे पहुँचना चाहिए वहाँ कभी पहुँच पाओगे क्या अगर ऐसे ही चलते रहे तो? ये रास्ता तुम्हें कहीं नहीं ले जाता। अगर तुम्हें घर पहुँचना है, घर में रहना है तो रास्ता बदलना होगा। तुम घर जाने का सपना छोड़ दो। तुम गरीब हो, तुम्हारा कोई घर नहीं है। भारत में जनसंख्या बहुत है, बेरोजगारी बहुत है, तो सस्ती मजदूरी भी बहुत है। किसी को तुम्हारी मौत से वास्तव में फर्क नहीं पड़ता। तुम्हारे मर जाने से लोगों को मजदूर मिलने बंद नहीं हो जाएंगे। तुम्हारी मौत की खबर पर लोग सोशल मीडिया, न्यूज़पेपर, TV पर दुःख जताएँगे, वहीं पर सरकार से सवाल करेंगे और फिर मूव ऑन कर जाएँगे। "गरीबों का मसीहा" बस एक राजनीतिक जुमला है जिसका इस्तेमाल कर तुम्हें चूतिया बनाया जाता है। तुम्हारे अलावा तुम्हारा कोई नहीं है। आज से 50 या 100 साल बाद जब फिर से कोई नई महामारी आएगी तब तुम्हारे बच्चें या उनके भी बच्चें ऐसे ही फिर से खाली पैर