Posts

Showing posts from November, 2018

कितने ख़ुदा

ओ खानाबदोश ख़ुदा, तुु मन्दिर में भी रहता तुु मस्जिद में भी रहता तु गिरजा में भी रहता किन्तु ना तु मस्जिद में मिलता ना मंदिर में मिलता ना गिरजा में मिलता है। तु टुकडों में, रंगो में बँटा, ख़ुद से ही जुदा हैै। तुझे पता है? आज फिर, तेरे दर के सीढ़ियों पर बैठ भीख माँगता एक ग़रीब फकीर, जिसे ना पत्थर के ख़ुदा ने दिया और ना ही हाड़ के ख़ुदा ने, रात पाले से ठिठुर मर गया कल से सीढ़ियों पर नहीं दिखेगा, उसके पास कम्बल नहीं था मेरे पास ख़ुदा नहीं है। जाने यहाँ फिर भी कितने ख़ुदा हैं! 

प्रेम

हम पथिक हैं, चलते जाएँगे अनवरत, तुम तक पहुँचने को प्रतीक्षारत, पर मिलना तुमसे, ना हो सकेगा कभी, क्योंकि तुम मंज़िल नहीं कोई, तुम पथ हो, जिसका अन्त नहीं कोई।