कितने ख़ुदा

ओ खानाबदोश ख़ुदा,
तुु मन्दिर में भी रहता
तुु मस्जिद में भी रहता
तु गिरजा में भी रहता
किन्तु
ना तु मस्जिद में मिलता
ना मंदिर में मिलता
ना गिरजा में मिलता है।
तु टुकडों में, रंगो में बँटा,
ख़ुद से ही जुदा हैै।

तुझे पता है? आज फिर,
तेरे दर के सीढ़ियों पर बैठ
भीख माँगता एक ग़रीब फकीर,
जिसे ना पत्थर के ख़ुदा ने दिया
और ना ही हाड़ के ख़ुदा ने,
रात पाले से ठिठुर मर गया
कल से सीढ़ियों पर नहीं दिखेगा,
उसके पास कम्बल नहीं था
मेरे पास ख़ुदा नहीं है।
जाने यहाँ फिर भी कितने ख़ुदा हैं! 

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