तुम्हारे बाद

अब कितना कुछ नहीं होगा!

रात के सन्नाटे को चीरती तुम्हारी पुकार नहीं होगी,
फर्श पर तुम्हारे गीले चप्पलों के निशाँ,
गलतियों पर तुम्हारी डाँट नहीं होगी!

बचपन में जब बिजली नहीं होती थी,
गर्मियों में तुम मुझे रात भर पंखा झलती,
अब नींद में उस पंखे की शीतल चर्र चर्र भी नहीं होगी!

वो जुग जुग जीने का आशीर्वाद नहीं होगा,
वो अपरिमित अथाह प्यार,
उन झुर्रियों से मिलते उत्साह का संचार नहीं होगा!


अब जब तुम नहीं हो,
तो कितना कुछ नहीं होगा!

अब तो सिर्फ़ तुम्हारी अनंत यादें होंगी,
घर में तो नहीं,
पर मन में गूँजती तुम्हारी आवाज़ें होंगी,
हरदम तुम्हारे संघर्षों की बातें,
ना जाने कैसे बिन तुम्हारे ये दिन-रातें होंगी!

पता है, धीरे धीरे आदत लग जाएगी,
तुम्हारे अनुपस्थिति की,
पर ये आदत भी तुमसे खिलाफत होगी,
हमेशा की तरह इस बार भी माफ़ कर देना तुम,
इस से बड़ी और क्या राहत होगी!

क्या लिखूँ ,कैसे और कितना लिखूँ ,
काँप रही हैं उँगलियाँ
थर्रा जाता हूँ ये सोचकर,
तुम नहीं होगी अब,
अब कितना कुछ नहीं होगा! 

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