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Showing posts from 2018

कितने ख़ुदा

ओ खानाबदोश ख़ुदा, तुु मन्दिर में भी रहता तुु मस्जिद में भी रहता तु गिरजा में भी रहता किन्तु ना तु मस्जिद में मिलता ना मंदिर में मिलता ना गिरजा में मिलता है। तु टुकडों में, रंगो में बँटा, ख़ुद से ही जुदा हैै। तुझे पता है? आज फिर, तेरे दर के सीढ़ियों पर बैठ भीख माँगता एक ग़रीब फकीर, जिसे ना पत्थर के ख़ुदा ने दिया और ना ही हाड़ के ख़ुदा ने, रात पाले से ठिठुर मर गया कल से सीढ़ियों पर नहीं दिखेगा, उसके पास कम्बल नहीं था मेरे पास ख़ुदा नहीं है। जाने यहाँ फिर भी कितने ख़ुदा हैं! 

प्रेम

हम पथिक हैं, चलते जाएँगे अनवरत, तुम तक पहुँचने को प्रतीक्षारत, पर मिलना तुमसे, ना हो सकेगा कभी, क्योंकि तुम मंज़िल नहीं कोई, तुम पथ हो, जिसका अन्त नहीं कोई।

तुम्हारे बाद

अब कितना कुछ नहीं होगा! रात के सन्नाटे को चीरती तुम्हारी पुकार नहीं होगी, फर्श पर तुम्हारे गीले चप्पलों के निशाँ, गलतियों पर तुम्हारी डाँट नहीं होगी! बचपन में जब बिजली नहीं होती थी, गर्मियों में तुम मुझे रात भर पंखा झलती, अब नींद में उस पंखे की शीतल चर्र चर्र भी नहीं होगी! वो जुग जुग जीने का आशीर्वाद नहीं होगा, वो अपरिमित अथाह प्यार, उन झुर्रियों से मिलते उत्साह का संचार नहीं होगा! अब जब तुम नहीं हो, तो कितना कुछ नहीं होगा! अब तो सिर्फ़ तुम्हारी अनंत यादें होंगी, घर में तो नहीं, पर मन में गूँजती तुम्हारी आवाज़ें होंगी, हरदम तुम्हारे संघर्षों की बातें, ना जाने कैसे बिन तुम्हारे ये दिन-रातें होंगी! पता है, धीरे धीरे आदत लग जाएगी, तुम्हारे अनुपस्थिति की, पर ये आदत भी तुमसे खिलाफत होगी, हमेशा की तरह इस बार भी माफ़ कर देना तुम, इस से बड़ी और क्या राहत होगी! क्या लिखूँ ,कैसे और कितना लिखूँ , काँप रही हैं उँगलियाँ थर्रा जाता हूँ ये सोचकर, तुम नहीं होगी अब, अब कितना कुछ नहीं होगा! 

एक अधूरी कविता

एक अधूरी प्रेम कहानी अधूरी क्यों होती है? शायद लेखक और लिखना न चाहता हो, या स्याही ख़तम हो गई, या पन्ने, समय भी तो ख़त्म हो जाता है कभी कभी, एक अधूरी कहानी के अधुरे होने की, कहानियाँ भी बहुत होती हैं! किरदार बदल जाते हैं, कभी व्यवहार बदल जाते हैं, कहानियों में बहुत कुछ है, जो हर बार बदल जाते हैं, इन बदलते चीज़ों के बदल जाने की, निशानियाँ भी बहुत होती हैं! लेखक और किरदार ही दोषी क्यूँ, एक ज़माना भी तो है, कहानियों के अन्तिम पन्ने चुराने वाला, प्रेम-पुस्तक को दीमक बन खाने वाला, छद्म अभिमान के तडिताघात में झुलसी, जवानियाँ भी बहुत होती हैं! अनगिनत कारण हैं कि एक अधूरी प्रेम कहानी , अधूरी होती है!

नींद में

कभी कभी देखता हूँ ख़ुद को, बड़ी उँचाई से गिरते हुए, जैसे हो कोई पहाड़ की चोटी, या अँधे मोड़ पर कोई गहरी घाटी, ना सिर्फ़ देखता, बल्कि महसूस भी करता, और गिरता भी हूँ! ना, मयकश नहीं हूँ मैं! हाँ, गिरता हुआ, जब मैं तुमसे बातें कर रहा हूँ, जब हँस रहा हूँ, हवा में हूँ अभी भी, और नीचें, और नीचें ढहता जा रहा हूँ, आधारहीन मैं गिरता जा रहा हूँ! उपर उठने की जल्दीबाजी में, इंसान फिसल ही जाता है! अब समतल का इंतज़ार है, ताकि फिर से उठूँ, पूरा गिर चुकने के बाद! समतल, क्यूँकि मध्य से इन्सान तो वापस नहीं उठ सकता, कम से कम इंसान तो नहीं उठ सकता, ऐसा सिर्फ़ सपनों में होता हैं! पता नहीं, मैं कहाँ हूँ!

टाइम बम

6 अगस्त 1945, अमेरिका ने जापान पर लिटिल बॉय गिराया! मानवता के इतिहास का तब तक का सबसे ख़तरनाक बम! पूरा शहर राख हो गया, लाखों लोग मरे और बम का असर इतना ख़तरनाक की आज 70 साल से अधिक हो गए फिर भी विकलांग बच्चे पैदा होते हैं! आजकल कुछ लोग बोल रहे हैं कि हमें ग़लत इतिहास पढ़ाया जा रहा हैं! मुझे भी लगता हैं कि हमें ग़लत इतिहास पढ़ाया जा रहा हैं!  हमें बताया जाता है कि हिरोशिमा नागासाकी पर जो बम गिरा था वो सबसे ख़तरनाक बम था! लेकिन एक बम तो इंडिया पर भी गिरा था, 30 दिसंबर 1906 को! अँग्रेजी सरकार का गिराया हुआ बम, ऑल इंडिया मुसलिम लीग! देश धरम के नाम पर बँटना शुरू हुआ!  धर्म के नाम पर लड़ाइयाँ शुरू हुई........ बम इतना ख़तरनाक था कि उसके असर से लोग आज भी मर रहे हैं, वैचारिक रूप से विक्षिप्त लोग पैदा हो रहे हैं! जापान वाले बम का असर शायद अगले 50-100-150 या 200 सालों में ख़तम हो जाए, इंडिया वाले बम का असर तो इंडिया की मौत के साथ ही ख़तम होगा!