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यायावर

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2 मार्च 2020 को मैं पहली बार बर्फ वाले पहाड़ पर गया था। ये सुबह कितनी खूबसूरत थी। मैं इसमें बस थोड़ी देर ही रह पाया। फिर ये सुबह चली गई। तुम इस सुबह से असंख्य गुना खूबसूरत हो। तुम्हारी उपस्थिति से मेरा पूरा दिन इस सुबह सा होता। पूरी रात भी सुबह सी होती। लेकिन फ़ैज़ ने लिखा है - "यूँ न था, मैंने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाए।" बीते 18 जुलाई को मैंने अज्ञेय की किताब "अरे यायावर याद रहेगा" आर्डर की थी। डिलीवरी वाले किताब को पहले पटना लेकर आए और फिर मेरे पास लाने की बजाय रांची भेज दिया। पता नहीं क्यों। अपने नाम को सिद्ध करती हुई किताब भी यायावर बनी हुई है।  आना संदेहास्पद है लेकिन तुम्हारे आते ही मैं तैयारियाँ शुरू कर दूँगा तुम्हारे जाने के समय की। मैं पर्यटन स्थल हूँ या तुम पर्यटक, ये बात अभी तय नहीं है। लेकिन ये तय है कि दोनों में से कोई एक बात ही सच है। ये तय है कि यात्रा जारी रहेगी।

Notting Hill

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हम समाज के दायरे में बंधे हुए लोग हैं। मानव समाज नाम की कोई एक चीज़ नहीं होती। हर मानव का समाज अलग है, हर समाज के मानव अलग हैं। उनका दूसरे समाज वाले मानव से बहुत ही प्रतिबंधित संपर्क है। राजकुमारी को गरीब नौजवान से प्यार हो जाता है। राजकुमारी अपने प्यार के लिए क्रूर राजा से बगावत करती है, जीतती है। अंत में राजकुमारी और गरीब नौजवान साथ मे खुशी-खुशी रहने लगते हैं। पहली नज़र में कहानी बोरिंग सी दिखती है। मजबूत इकोनॉमिक बैकग्राउण्ड वाली कमजोर और मशहूर एना स्कॉट जब लंदन के नॉटिंग हिल में किताब की दुकान चलाने वाले कमजोर इकोनॉमिक बैकग्राउण्ड वाले मजबूत विलियम थैकर की दुकान में किताब लेने आती तब एक कहानी की शुरुआत होती है। कहानी जिसमें खुशियाँ तलाशते बहुत सारे लोग है। क्रूर समाज है। एना की खुद की क्रूर इनसिक्योरिटी है। राजकुमारी एना को क्रूर राजा एना से लड़ते देखना, अपने इनसिक्योरिटी और dilemma से लड़ते देखना खूबसूरत है। समाज के दायरे को लाँघ प्रतिबंधित संपर्क को साधने की इस कहानी में इमोशन , स्वीट - मोमेंट्स, ह्यूमर और बहुत कुछ है जो जरूर देखने लायक है। नॉटिंग हिल घूमने जरूर जाइए।

जाओ

पता नहीं क्यों लिख रहा हूँ। जिनके लिए लिखा है उनतक बात नहीं पहुँचेगी। लेकिन फिर भी लिख दे रहा हूँ। बिहार के मजदूरों! तुम अपने घर की तरफ निकल तो गए हो, कुछ पहुँच जाओगे, कुछ मर जाओगे, लेकिन जहाँ तुम्हे पहुँचना चाहिए वहाँ कभी पहुँच पाओगे क्या अगर ऐसे ही चलते रहे तो? ये रास्ता तुम्हें कहीं नहीं ले जाता। अगर तुम्हें घर पहुँचना है, घर में रहना है तो रास्ता बदलना होगा। तुम घर जाने का सपना छोड़ दो। तुम गरीब हो, तुम्हारा कोई घर नहीं है। भारत में जनसंख्या बहुत है, बेरोजगारी बहुत है, तो सस्ती मजदूरी भी बहुत है। किसी को तुम्हारी मौत से वास्तव में फर्क नहीं पड़ता। तुम्हारे मर जाने से लोगों को मजदूर मिलने बंद नहीं हो जाएंगे। तुम्हारी मौत की खबर पर लोग सोशल मीडिया, न्यूज़पेपर, TV पर दुःख जताएँगे, वहीं पर सरकार से सवाल करेंगे और फिर मूव ऑन कर जाएँगे। "गरीबों का मसीहा" बस एक राजनीतिक जुमला है जिसका इस्तेमाल कर तुम्हें चूतिया बनाया जाता है। तुम्हारे अलावा तुम्हारा कोई नहीं है। आज से 50 या 100 साल बाद जब फिर से कोई नई महामारी आएगी तब तुम्हारे बच्चें या उनके भी बच्चें ऐसे ही फिर से खाली पैर

जिहाद और हिन्दू राष्ट्रवाद

भारतीय सेना ने हिजबुल मुजाहिद्दीन के कमांडर रियाज़ नाइकू को मार दिया। सोशल मीडिया इसपर बड़ा खुश नज़र आ रहा है। मैं बहुत खुश नहीं हूँ। आतंकवादी की उम्र कुछ महीने की ही होती है। उसका मरना निश्चित था। अब उसकी जगह कोई और आ जाएगा , ये भी निश्चित है क्योंकि आतंकी विचारधारा अभी ज़िंदा है। एक अदने से आतंकी की मौत पर जश्न मनाने के लिए मेरे पास कोई वजह नहीं है। कुरान में जिहाद का मतलब "शांतिपूर्ण वैचारिक लड़ाई " है, लेकिन आज के समय में इस्लामिक लीडर्स ने अलग किस्म का जिहाद चला रखा है। आज जिहाद आतंक का पर्यायवाची बन गया है। किताब की दुहाई देकर जिहाद को डिफेंड करना, इनोसेंट बताने की कोशिश करना सिर्फ आपको धूर्त साबित करता है, और कुछ नहीं। प्राचीन काल में हिन्दू धर्म में वर्ण व्यवस्था कर्म के आधार लार थी। धीरे - धीरे यह विकृत होकर जन्म के आधार पर हो गई, जिसने भेदभाव और शोषण को वंशागत कर दिया। कालांतर में ज्योतिराव फुले और डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर जैसे समाज सुधारकों का प्रादुर्भाव हुआ। एक लंबी लड़ाई लड़ी गई, जो आज भी जारी है। यह स्वीकार किया गया कि जाति व्यवस्था हानिकारक है और इसका उन्मूलन ही एकम

Anxiety

तमाम कोशिशों के बावजूद मेरा weight नहीं बढ़ रहा, लेकिन मैं ख़ुश हूँ क्योंकि hairfall कम हो गया है। छोटे शहरों के मिडिल क्लास लौंडे ऐसे ही छोटे-छोटे वजहों को खोज कर ख़ुश सा रहते हैं। मैंने अपने दिमाग में आदर्श खूबसूरत दुनिया की एक परिकल्पना तैयार कर रखी है, जहाँ सब खुश रहते है। असल दुनिया ऐसी नहीं है। . . Biscuit खाने के बाद wraper फेंकने के लिए dustbin ना दिखे तो मुझे बेचैनी होने लगती है। कोई इंसान सड़क किनारे क्यों सो रहा है? धरती ही छोटी है या हम इंसान इतने अधिक हो गए है कि अब सड़क किनारे सोना पड़ रहा है? "हम चाँद पर रोटी की चादर डाल कर सो जाएंगे।" इस कुत्ते की टांग किसने तोड़ी होगी? अगर मैं उस आदमी टांग तोड़ दूँ तो क्या वह इस कुत्ते के दर्द को समझ कर इस से माफी माँगेगा या वह मेरी पुलिस में शिकायत कर देगा? . . मैं सब से नाराज़ हूँ। मैं खुद से भी नाराज़ हूँ। क्यों? ठीक-ठीक वजह मुझे भी नहीं पता। डार्विन सही था। Survival of the fittest ही एकमात्र सच है। बाकी सब कुछ बकवास है। अच्छा इंसान मत बनिए। बहुत अच्छा इंसान तो बिलकुल मत बनिए वरना ये दुनिया आपकी मार लेगी। . तू जो मिल जाए तो त

समाजिक समस्या

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सारे मन्दिरों को तोड़ दो  मस्जिदों को नेस्तनाबूद कर दो, गिरजों को मयखाने में तब्दील कर दो भगवान को मार दो। इन धर्म ग्रंथों के पन्ने फाड़ दो, उसपर बड़े प्रेम से प्रेम लिखो, और हवाई जहाज़ बना कर उड़ा दो। फिर जब वो हवाई जहाज़, किसी से जाकर टकराएगा वो सिर्फ़ इन्सान कहलाएगा, शुद्ध इन्सान!  क्योकि धर्म एक समस्या है।

कितने ख़ुदा

ओ खानाबदोश ख़ुदा, तुु मन्दिर में भी रहता तुु मस्जिद में भी रहता तु गिरजा में भी रहता किन्तु ना तु मस्जिद में मिलता ना मंदिर में मिलता ना गिरजा में मिलता है। तु टुकडों में, रंगो में बँटा, ख़ुद से ही जुदा हैै। तुझे पता है? आज फिर, तेरे दर के सीढ़ियों पर बैठ भीख माँगता एक ग़रीब फकीर, जिसे ना पत्थर के ख़ुदा ने दिया और ना ही हाड़ के ख़ुदा ने, रात पाले से ठिठुर मर गया कल से सीढ़ियों पर नहीं दिखेगा, उसके पास कम्बल नहीं था मेरे पास ख़ुदा नहीं है। जाने यहाँ फिर भी कितने ख़ुदा हैं! 

प्रेम

हम पथिक हैं, चलते जाएँगे अनवरत, तुम तक पहुँचने को प्रतीक्षारत, पर मिलना तुमसे, ना हो सकेगा कभी, क्योंकि तुम मंज़िल नहीं कोई, तुम पथ हो, जिसका अन्त नहीं कोई।

तुम्हारे बाद

अब कितना कुछ नहीं होगा! रात के सन्नाटे को चीरती तुम्हारी पुकार नहीं होगी, फर्श पर तुम्हारे गीले चप्पलों के निशाँ, गलतियों पर तुम्हारी डाँट नहीं होगी! बचपन में जब बिजली नहीं होती थी, गर्मियों में तुम मुझे रात भर पंखा झलती, अब नींद में उस पंखे की शीतल चर्र चर्र भी नहीं होगी! वो जुग जुग जीने का आशीर्वाद नहीं होगा, वो अपरिमित अथाह प्यार, उन झुर्रियों से मिलते उत्साह का संचार नहीं होगा! अब जब तुम नहीं हो, तो कितना कुछ नहीं होगा! अब तो सिर्फ़ तुम्हारी अनंत यादें होंगी, घर में तो नहीं, पर मन में गूँजती तुम्हारी आवाज़ें होंगी, हरदम तुम्हारे संघर्षों की बातें, ना जाने कैसे बिन तुम्हारे ये दिन-रातें होंगी! पता है, धीरे धीरे आदत लग जाएगी, तुम्हारे अनुपस्थिति की, पर ये आदत भी तुमसे खिलाफत होगी, हमेशा की तरह इस बार भी माफ़ कर देना तुम, इस से बड़ी और क्या राहत होगी! क्या लिखूँ ,कैसे और कितना लिखूँ , काँप रही हैं उँगलियाँ थर्रा जाता हूँ ये सोचकर, तुम नहीं होगी अब, अब कितना कुछ नहीं होगा! 

एक अधूरी कविता

एक अधूरी प्रेम कहानी अधूरी क्यों होती है? शायद लेखक और लिखना न चाहता हो, या स्याही ख़तम हो गई, या पन्ने, समय भी तो ख़त्म हो जाता है कभी कभी, एक अधूरी कहानी के अधुरे होने की, कहानियाँ भी बहुत होती हैं! किरदार बदल जाते हैं, कभी व्यवहार बदल जाते हैं, कहानियों में बहुत कुछ है, जो हर बार बदल जाते हैं, इन बदलते चीज़ों के बदल जाने की, निशानियाँ भी बहुत होती हैं! लेखक और किरदार ही दोषी क्यूँ, एक ज़माना भी तो है, कहानियों के अन्तिम पन्ने चुराने वाला, प्रेम-पुस्तक को दीमक बन खाने वाला, छद्म अभिमान के तडिताघात में झुलसी, जवानियाँ भी बहुत होती हैं! अनगिनत कारण हैं कि एक अधूरी प्रेम कहानी , अधूरी होती है!